समय सीमा
शाश्वत सत्य है
समय सीमा तय है
रिश्ते, प्रेम, संवेदनाएं,
आस, विश्वास, कल्पना की
समय सीमा तय है
स्वयं से जुड़ी प्रत्येक भावना
अवलोकन कर निष्कर्षत:
रिक्तता ही भाग्य है
समय सीमा तय है
क्षत-विक्षत विश्वास अटूट
उपेक्षाओं ने गढ़ी छवि
संवेदनाएं आहत हैं
समय सीमा तय है
अंततः पाषाण हृदय
समय ना करे विलम्ब
समय चलता अनवरत है
पर, समय सीमा तय है
समय सीमा को तोड़ता
वेदना का चक्र....
जो है असीमित, अनंत....
अकथनीय, असहनीय पीड़ा.....
अथाह वेदना का आश्रय है....
समय सीमा कहाँ अब तय है....
विनीता पुंढीर