मैं क्यो लिखता हूं ....
मकसद नहीं है .. भीड़ जुटाना
नाही शोर मचाना
लिख लेता हूं कुछ उभरता सा
है मन में
कुछ जज्बात है
जो चाहता हूं कह जाना
मकसद नहीं है ....
ए शब्द नटखट हैं, शोख भी
चंचल से है, कभी ख़ामोश भी
ला देंगे आंखों में आसूं कभी
कभी पड़ जायेगा खिलखिलाना
मकसद नहीं है ....
छू लेंगे कभी तुम्हें
ए इतने अपने पन से
भीग जायेगा...