एक पन्ना मेरी डायरी का
सोचा ना था कभी एक ऐसा भी एहसास होगा दिल को,
क्या नियति का सृजन मुझे भी खींच लेगा ,
अपनी मोहक दुनिया में ,
अनजाने में कहूं या फिर इत्तेफाक कहूं इसे
जो मेरा मन भी मझधार में है कब क्यों कैसे महसूस हुआ कुछ अलग सा ?
मन में अपनापन ना जाने कैसे जुड़ गया मेरा मन अब लगता है एक अटूट सा बंधन बहुत सहेजा दिल को जाने कैसे ये फिसल गया नियति को क्या मंजूर था?
कहना मुश्किल है पहली बार हुआ है महसूस ऐसा जैसे पहली बार मिला हो एक ऐसा शांति देने वाला मोती जिसकी कब से तलाश थी!
कभी-कभी मैं खुद से भी अंजान हो जाती है आखिर मैं हूं कौन?? क्या ये अधिकार है मुझे?
© anu singh
क्या नियति का सृजन मुझे भी खींच लेगा ,
अपनी मोहक दुनिया में ,
अनजाने में कहूं या फिर इत्तेफाक कहूं इसे
जो मेरा मन भी मझधार में है कब क्यों कैसे महसूस हुआ कुछ अलग सा ?
मन में अपनापन ना जाने कैसे जुड़ गया मेरा मन अब लगता है एक अटूट सा बंधन बहुत सहेजा दिल को जाने कैसे ये फिसल गया नियति को क्या मंजूर था?
कहना मुश्किल है पहली बार हुआ है महसूस ऐसा जैसे पहली बार मिला हो एक ऐसा शांति देने वाला मोती जिसकी कब से तलाश थी!
कभी-कभी मैं खुद से भी अंजान हो जाती है आखिर मैं हूं कौन?? क्या ये अधिकार है मुझे?
© anu singh