...

3 views

एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।
मुझे देखकर छाती से दुपट्टा हटाती हुई,
हौले -से बोली ,'आ बालम आ!
क्या जनेऊ खूंटी पर टांग आया है,
क्या फेंक आया है,
अकूरडी पर सब पोथी -पनाड़ा
तो बैठ जेठ की इस गर्मी में,
क्या सुनाऊ तुम्हें,
ठुमरी,कजरी, ग़ज़ल या कोई फिल्म गीत,

मेरी फरमाइश को सलाम कर वह,
लग गई थी सुर साधने ,
मध्य सप्तक में छेड़ी होगी कोई धुन,
जिसे सुनकर नहाने लग गई थी रेत में चिड़िया,
कुंजियों पर थिरकती उंगलियां,
ऐसे लग रही थी मुझे
जैसे नाभी और छाती के समीकरण को सुलझा रही हो,

जब तक सांसें उखड़ नहीं गई थी,
आंसुओ से चोली भीग नहीं गई थी,
मेरे ललाट पर लगा
चंदन मिश्रित केसर तिलक
थके माथे बच्चे की तरह
उसकी छाती पर पसर नहीं गया था,
और चारों दिशाओं के पंडों -महापंडो के तंत्र मंत्र,
उसकी जांघों के बीच
घायल पखेरू की तरह फड़फड़ा रहे थे।।
जिसमें से कुछ ऐसी मानो कोई काम कर रहा हो,
किसी का काम हो रहा हो मगर मज़ा दोनों को ही होता है।।

क्योंकि वह चीखती है और चीखें निकालती
ताकि वह उत्तेजित हो जाएं ,
और वह मल उसकी चूत व योनि पर बिखेर,
तथा उसकी चूत व योनि अपनी चीवा से चाटकर,
उसके पखेरू की अग्नि की प्यास बुझाते और वह उसके औजार को पहले गाड़ व चूत का स्पर्श
करवाकर उसे अपने मुंह में लेकर उसे जरमसुख की प्राप्ति करवा देती हैं ,
जिसे यह गाथा काव्य संग्रह श्रोत स्तुति भी असफल असंभव व अनन्त हो जाता जो कि कलि के कलियुग में इच्छा व स्वार्थ से ग्रस्त होकर रोगिन योनि में भृमण करे अमर सकंटी अश्वधामा नायिका लोकोकतानि का श्राप था।।

#श्रापित🪔🙏💔💞💘💓💕👅🩸💋
#एक_असभंव_प्रेमगाथा_अनन्त_एकवैशया_और_अन्य_की।।