...

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हां,तुम!
क्या तुम खुदको कभी देखे हो?
कैसा हो तुम ?
कोन हो तुम ?
किस तरह की सोच रखते हो तुम ?
क्या तुम खुदको कभी देखे हो?

दुनिया की वारे में तो बता देते हो तुम!
वो वैसा है, यह ऐसी है!
अंदाजा लगा लेते हो तुम।
बातों बातों में हर किसीको जान लेते हो तुम!
क्या तुम खुदको कभी देखे हो?
जाने हो की तुम कैसे हो?
खुदके लिए क्या हो?
दूसरों के लिए क्या हो ?
हां, तुम !
क्या तुम खुदको कभी देखे हो!

किसी के वजह से किसी और को परख लेते हो!
कहां किसी और की दर्द, कहां किसी और को दे देते हो!
खुद नादान हो कर भी दूसरों को ज्ञान देते हो।
क्या तुम खुदको कभी देखे हो ?

प्यार किया, धोका मिला!
अब तुम बोलते हो दुनिया को समझ लिया!
जान लिया सबको,
किसी और की गलती के लिए बुरा समझते हो सबको!
क्या तुम खुदको कभी देखे हो ?

क्रूरता दिखाई देता है,
स्वार्थ दिखाई देता है।
प्यार , मोहब्बत अब झूठा लगने लगा,
सिर्फ एक इंसान के लिए दुनिया बुरा लगने लगा।
क्या सही , क्या गलत सब एक जैसा लगने लगा।
देखो क्या,कै और कैसा तुम्हे लगने लगा!

क्या तुम खुदको कभी देखे हो?
हां, तुम !


© dikshya