एक कहानी पढ़ी मैंने दो दीवानों की...
एक कहानी पढ़ी मैंने दो दीवानों की...
चुपचाप वो तकता उस दीवानी को,
कुछ न कह पाता पर वो चाहता उस दीवानी को
दूर कहीं नदिया के पुल पर लेटा
उठती लहरों में अक्स देखता उस दीवानी का..
काश कहीं दीदार हो जाये उसका,
यह सोंच कर फिरता वो दीवानों सा...
जाड़े की बारिस में...
चुपचाप वो तकता उस दीवानी को,
कुछ न कह पाता पर वो चाहता उस दीवानी को
दूर कहीं नदिया के पुल पर लेटा
उठती लहरों में अक्स देखता उस दीवानी का..
काश कहीं दीदार हो जाये उसका,
यह सोंच कर फिरता वो दीवानों सा...
जाड़े की बारिस में...