...

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खामोशियां
तुम चले गए थे.... जाना ही था...... !
इसमे नया तो कुछ  भी नहीं था, कुछ अलग सा..कुछ जादू सा ...काश!!..... कि वक़्त वही ठहर जाता टाइप ..वक्त है और इसकी अपनी एक रफ्तार है ....इसका  चलना भी उसी रफ्तार का हिस्सा  है तो फिर शिकायत कैसी??
पर मै शिकायत तो कर ही नहीं रही ...

कभी-कभी ऐसा लगता है मुझे, कि हमारा मिलना, बिछड़ना सभी नियति के हाथों तय है।
वही मिलाती है  किसी खास मकसद से ..किसी खास अवधि तक ...!!
पर हमारा मिलना किस उद्देश्य की पूर्ति हेतु था??
लाख कोशिश कर के भी समझ नहीं पा रही हूँ।
खैर कुछ न कुछ तो रहा ही  होगा........!
एहसास स्पर्श का मोहताज नही होता।

तुम जा रहे थे और मै तुम्हे  जाते हुए अंतिम छोर तक देखती रही। मन में एक खालीपन सा भरता गया।
खालीपन..... कितना सालता है मन को
बिलकुल उदास सा ....!!
पर उदासी का भी तो अपने हिस्से का आसमान होता है ....जहाँ वो यादों की गोद में सुकूं के साथ सो जाना चाहता है। एक खूबसूरती समेटे हुए ।
हाँ, उदासी...