...

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तेरे शहर को ये हुआ क्या है?
वक्त के कुछ बेवक्त से दोराहे पे,
इस रोज़ ज़िन्दगी जब,
एकाएक मिली मौत से,
मौत ने पूछा, ए रहगुजर,
बड़ी खामोशी है
तेरे ज़माने में आजकल,
बता तेरे शहर को ये हुआ क्या है?

ज़िन्दगी ने इक आह भरी
और बोली…
कुछ नहीं, बस एक मर्ज़ है,
ज़माना ये बेबस बहुत है
ये नहीं जानता के,
इस मर्ज़ की दवा क्या है?
गर हो तुम्हें मालूम,
तो तुम ही कहो,
इस दर्द को फ़ना कर दे जो,
वो दवा क्या है?
दवा नहीं, तो बस ये ही बता दो
गर हो कोई, वो दुआ क्या है?

इस पर मौत ने हंसते हुए कहा
ए हमसफ़र, तेरे हर दर्द, हर मर्ज़
की आख़िरी दवा मैं हूं।
पर माने तू मेरी ये बात
ये तेरी रज़ा, क्या है?

ज़िन्दगी मुस्कुराई और बोली
बेशक सच है ये बात,
पर ज़माने से हमने
बड़े ही सलीके से
छुपाया था ये राज़ !

तुम क्या जानो,
तुम्हारी हाज़िरी ज़माने से
छुपाए रखने का,
ये सारा माजरा क्या है?
गर जानते तुम?
शायद पूछते ही नहीं हमसे
के बता…?
"तेरे शहर को ये हुआ क्या है?"

-@Theeternalmuse