✍🏾🥀हस्ब-ए-बरदाश्त🥀✍🏾हस्ब-ए-हाल🥀✍🏾
इश्क की लकीर अधूरी थी जानी हाथों में मेरे
ये जानते हुए भी इस इश्क से मोहब्बत की है मैंने..!
जागने की आदत नहीं है मेरी
बस वो मुझ को सोने नहीं देती
उसकी आवाज़ उसकी आंखें उसकी बातें
उसका अहसास उसकी यादें
जानी मुझे सोने नहीं देती..!
की वो जो अब मेरी नहीं तो क्यों उसको अपना बताऊं
अमानत है वो जो अब किसी और की तो
अपना कह कर अब उसको मैं कैसे बुलाऊं..!
अंजान है तो जानी हम अंजान ही अच्छे है
ये बात_चीत ये...
ये जानते हुए भी इस इश्क से मोहब्बत की है मैंने..!
जागने की आदत नहीं है मेरी
बस वो मुझ को सोने नहीं देती
उसकी आवाज़ उसकी आंखें उसकी बातें
उसका अहसास उसकी यादें
जानी मुझे सोने नहीं देती..!
की वो जो अब मेरी नहीं तो क्यों उसको अपना बताऊं
अमानत है वो जो अब किसी और की तो
अपना कह कर अब उसको मैं कैसे बुलाऊं..!
अंजान है तो जानी हम अंजान ही अच्छे है
ये बात_चीत ये...