...

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हौसला.....
मुसाफिर हूँ इन राहो का
मंज़िल पाना अभी बाकी है
सबके चेहरे पर हँसी तो है
पर मन मे एक उदासी है
खोई गयी चांदनी बादल में
हिम्मत के लौ की बाती है
मुसाफिर हूँ इन राहों का
मंज़िल तक जाना बाकी है
भयभीत न हो अंधेरो से
अंधेरो की आजमाइश है
एक तन जिसको ईश्वर ने दिया
दुनिया क्यों लहू की प्यासी है।
बोया था पेड़ छाया के लिए
फिर भी नही कोई साथी है
मुसाफिर हूँ इन राहों का
मंज़िल तक जाना बाकी है।
ऐ बादल ऐसे ना गरजो
तुमको भी बरसना बाकी है
भयभीत नही होता हूँ मैं
अभी मेरा गरजना बाकी बाकी है।
मुसाफिर हूँ इन राहों का
मंज़िल तक चलना बाकी है।
© Roshanmishra_Official