श्रृंगार रस..
महजबीं सी खूबसूरत दुल्हन के जोड़े में अविस्मरणीय
रूप,में चमकता प्रीत का बहता हुआ अबशार कैसा है!
प्रीत की धानी सी लाल चुनर ओढ़े बताता, महबूब
के लिए व्याकुल आँखों में उसका इंतजार कैसा है
कानों में सुशोभित झुमके भी करते शरारत गालों,
को चूम कर,कहते मिलने को दिल बेकरार कितना है
मेरी आंखों का काजल भी करता सवाल बता ना
बेसब्री से ढूढ़ती इन आँखों को किसका दीदार है!
मेरे पैरों की पायल के साथ तेरी धड़कन भी थिरकतीं,
कहो ना किसके लिए ये सवरता हुआ सोलह श्रृंगार है!
मेरी नाक की नथनी को भी खुद पर इतना...
रूप,में चमकता प्रीत का बहता हुआ अबशार कैसा है!
प्रीत की धानी सी लाल चुनर ओढ़े बताता, महबूब
के लिए व्याकुल आँखों में उसका इंतजार कैसा है
कानों में सुशोभित झुमके भी करते शरारत गालों,
को चूम कर,कहते मिलने को दिल बेकरार कितना है
मेरी आंखों का काजल भी करता सवाल बता ना
बेसब्री से ढूढ़ती इन आँखों को किसका दीदार है!
मेरे पैरों की पायल के साथ तेरी धड़कन भी थिरकतीं,
कहो ना किसके लिए ये सवरता हुआ सोलह श्रृंगार है!
मेरी नाक की नथनी को भी खुद पर इतना...