...

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ख़्वाब बेअसर सा लगता हैं
मोहब्बत तुमसे है, पर ख़्वाब बेअसर सा लगता है,
तेरी बातों में घुला प्यार क्यों मुझे जहर सा लगता है!

कहने को तो सब अपने यहाँ, अनजान से शहर में,
वीरान सी राहो में साथ होकर दुशवार सा लगता है!

जहाँ गुंजती थी खुशियों की किलकारियां अताह,
भरी है महफ़िल सितारों से,सब बंजर सा लगता है!

जाने कौन सी ख़ता कर दी हमने की मेरा हमनवा,
साथ होकर भी तुम्हारे,ये तन्हा सफ़र सा लगता है!

सच्चाई का कोई मोल नहीं जहां में,फरेब बनकर,
रहो तो सबको यहाँ पर हुनर सा लगता है!

मन में ऐसा आक्रोश भर दिया है हर इंसान ने की,
अपनों से भरे संसार में मुझे कहीं डर सा लगता है!

लोगों के हर सुःख दुःख में खड़े हो जाते अपना,
समझ कर लोगों को संघति का असर लगता है!

जिनकी छाँव तले हमें सुकून का छाया महसूस हो,
वो परिवार का कर्मठ इंसान शजर सा लगता है!
© Paswan@girl