...

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मैं और मेरी कलम
मैं और मेरी कलम
कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते
मैं और मेरी कलम
होशलो को मेरे बुलंद कर देती हैं
मुझे मेरी कलम ।
एक पल भी मुझे खुद से दूर रहने नहीं देती
जो मेहसूस करती हूं
लिखने पे मजबूर हो जाती हूं
मैं और मेरी कलम ।
ना खुद रुकती हैं न मुझे थमने देती हैं ।
मेहनत खुद करती है और तारीफ
का हकदार सिर्फ मुझे बना देती है ।
कहती है घीस गई हूं तो क्या हुआ
पर नाम तेरा कागज़ से मिटने नहीं दूंगी
मेरी कलम मेरी पहचान बन चुकी हैं
कुछ ऐसे डोर से बंधे हैं एक दूसरे से
मैं और मेरी कलम ।।

©अनोखी