...

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Sorrow of a courageous girl
वे जितने सालूक करते गए
मेरे इरादे उतने पक्के होते गए

मैं समझती गई कि
ये वक्त समय मांगने का नहीं
उसे छीन के अपना वक्त बदल देने का हैं

थकती रहीं मैं
हर बात का जवाब और
हर कदम का हिसाब देते हुए

दबती गई मैं
इज्जत नाम के छल के बोझ तले

सिसकती रही मैं
अकेले उस तकिए तले
लांछन उनके याद कर जो किसी
दुख में नजर नहीं आते

रुकती रही मैं
मर्यादा की मृगतृष्णा मैं जीने से......


पर अब नहीं।


© first muskan