...

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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त कविता भाग दो।।
राजा और बंधुआ संवाद।।
बंधुआ राजा लेखक से कहते -महाराज मुझे यहां इस तरह क्यों रखा गया है।।
महाराज - लड़की हमने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ा है।।
बंधुआ -जी हुजूर आप ऐसे क्यों कह रहे रहे है।।
महाराज -जादा चालाक बन रही है तूं थी।।
बंधुआ -जी मैं कुछ समझी नहीं ।।
महाराज -तू सच्च बोल रही है यहा नाटक कर रही हैं।।
बंधुआ -नही जी मैं सच्च बोल रही हूं मुझे कुछ नहीं नहीं मालूम कि आप मुझे यहा क्यों और किस जुर्म में लाए हैं।।
महाराज -अच्छा ठीक है हम मान लेते हैं।।
महाराज -तू अपनी पहचान तो बता सकती है ना।।
बंधुआ -जी हुजूर मगर मैं बहुत डरी हुई हूं।।
बंधुआ -और मुझे ये सही नहीं लग रहा है।।
बंधुआ -माफ करे जी हुजूर मैं आप कुछ नहीं बता सकती हूं।।
महाराज -मगर क्यों, क्या बात है।।
बंधुआ -जी कुछ नहीं मुझे कुछ याद नहीं है।।
महाराज -ठीक हम तुम्हें कुछ समय देते हैं और फिर हो सकता है शायद तुम्हें कुछ याद आ जाए।।
बंधुआ -जी जैसा आप मुनासिब समझे।।
महाराज -तो ठीक है हम तुम्हें कुछ रियायत बरत रहे हैं।।
क्योंकि जब जब तक हम तुम्हें जान नहीं लेते तब हम कोई फैसला नहीं ले सकते।।
बंधुआ -जी ठीक है।।
महाराज -और हां सुनो हमने तुम्हारे लिए एक यक्ति को सभा में बुलवाया है जिसे देखकर शायद तुम्हें कुछ याद आएं।
बंधुआ -जी जी।।
#बनधुआ की छानबीन।।
परदे के पीछे।
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