...

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ज़िंदगी के पन्नों से
किताबों के दौर से बाहर आ गए हैं जनाब,
अब ज़िंदगी को पढ़ने लगे हैं।
हर पन्ना एक नया किस्सा सुनाता है,
हर मोड़ पर सबक सिखने लगे हैं।

सपनों की जुबां अब चुप सी हो गई,
हकीकतों के रंग दिखाने लगे हैं।
अब शब्द नहीं, अनुभव बोलते हैं,
खामोशियों में भी इशारे होने लगे...