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सच्ची मित्रता
सच्चा मित्र संध्या का समय हवा चली सर सर सर। मेरी संवेदना को गयी झकझोर कर। एक जिज्ञासा जगी मन मस्तिष्क पर। मैंने हवा से पूछा तू क्यों चलती रहती हरदम। कभी थोड़ा रुककर आराम कर ले एक पल। आराम देता बल आगे आगे बढ़ने का। लक्ष्य आसान होता जिससे निज जीवन का। हवा ने कहा मुझे चलते रहना है अपने मित्र के लिए। मेरे रुकने से मैं पीछे रह जाऊंगा कुछ पल के लिए। मेरा मित्र समय अनवरत चलता रहता है । रुककर मुझे अपने मित्र का साथ नहीं गवाना है। मित्र का साथ जो न छोड़े वही सच्चा मित्र कहलाता है। गरमी, सर्दी, वर्षा,आंधी या फिर आए भीषण तूफान। एक पल भी कभी कहीं रुकता नहीं समय ऐसा महान। मुझे समय के संग चल कर फर्ज अपना निभाना है। मित्र मित्र की पहचान का मंत्र सबको समझाना है। मित्र खोजना नहीं जगत में आसान जो चले मित्र राह सब जग अपना जान। (मोहन पाठक)
© सात्विक