...

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तुझसी रचना
काश! एक रचना तुझसी हुबहू हो जाये
जिसे पढ़कर तूमसे हम रुबरु हो जाये

तेरे ओंठो से जाम छलकता हैं स्याही बनकर
मेरे कविता में आ उतरता हैं हमराही बनकर

अक्षर अक्षर कर्जदार है तेरे लबों का
नैनों में घुली मदीरा में बिती शबो का

तेरी तारीफ में शब्द लटके हैं झुमके से
अंतरा करवट बदलता हैं तेरे ठुमके से

मेरे भाव फिसल रहे हैं तेरे गालों पर
शालिन मुस्कान, उछलती चालों पर

जिक्र से तेरे रचना में खुशबू सी खिलती हैं
जैसे हवाएं तुझे छूं कर मुझे आ मिलती हैं

तेरी अच्छाई पर तू कभी विश्वास नहीं होने देती
मुझे कभी कम होने का अहसास नहीं होने देती

तेरी बातूनी खामोशी, इशारों में देखूं कैसे
इस चुप्पी को अब कागज पर लिखूं कैसे

बहूत मुश्किल है यारा, तुझको लिखना
सरस भाव संजोकर, सादगी में रखना

© आशिष देशमुख