...

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हां... अनजान हूं मगर मुझे भी आपकी गोपी बनना है... प्यार तुमसे ही करना सीखा है कान्हा ,बस इतना तुम्हें बताना है...
नहीं देखा है कृष्ण को ,
ना ही मिली हूं उनसे...
पर उसके विषय में ,
मैंने औरों से सुना है ।

नहीं सुनी है उसकी बांसुरी,
कभी उसके पास बैठ कर,
पर उसकी बांसुरी की धुन को
मैंने सबसे मधुर माना है।

नहीं छुआ है मैंने
उसके माथे के मोरपंख को,
पर वो राधा के प्रेम का प्रतीक है
इस बात को मैंने जाना है।

नहीं खिलाया माखन
अपने हाथों से कभी भी उसे,
फिर भी मिश्री का भोग हर दिन
माखन चोर को लगाना है।

नहीं पहनाई वैजयंती माला
कभी उस मोहन को ,
पर प्रेम के मोतियों से
मुझे उसे सजाना है ।

नहीं लगाया चंदन का तिलक
नहीं बनाया पीतांबर,
पर उसका श्रृंगार जो एक बार देखा
अब मेरा मन उसका दीवाना है ।

हां... अनजान हूं मगर
मुझे भी उसकी गोपी बनना है
प्यार तुमसे ही करना सीखा है कान्हा !
बस इतना तुम्हें बताना है.....





© कृष्ण_प्रिया
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