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!... तो हैरानी कैसी...!
गुलामी पे रजामंद है आदम तो परेशानी कैसी
तराशे हुए बुत में है मुस्लिम तो हैरानी कैसी

मगरिब में हरम एक, फरंगी ने भी तामीर किया
सोए हुए है हम तुम गफलत में तो हैरानी कैसी

ढोंग पर ही तो कायम है ये रंग ओ बू की दुनिया
यहां कुछ भी हकीकत जो नहीं तो हैरानी कैसी

देख कर कुफ्र ओ फन, सो गए, अहल ए नजर
दर हकीकत कोई किसी का नही तो हैरानी कैसी

लूट लेते है दिल को जो दिल में उतर जाने के बाद
ऐसे दुश्मन से मयस्सर है जहां तो हैरानी कैसी

आह! हां ये सच है कि कातिल है ये सारे आदम
हो अगर इंसा के दुश्मन तो हैरानी कैसी

हर कोई दरवेश बना फिरता है दस्तों सहरा में
मकतब में पढ़ते है शैतान तो हैरानी कैसी

© —-Aun_Ansari