...

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मैं तुममें क़ैद हूँ
इन कोरे पन्नों में
मैंने तुम्हें क़ैद किया है !
मेरे मन का वो हर एहसास,
जो तुम से जुड़ा है...
जो आधा अधूरा है ...
मिलेंगे इन्हीं पन्नों में कहीं !
कभी शरारतें, कभी सादगी,
कभी शिक़ायतें, कभी नाराज़गी!
कभी दोस्ती, कभी बंदगी,
कभी मोहब्बत, कभी दीवानगी!
कभी ख़्वाब की बातें,
कभी हकीक़त की मुलाक़ातें !
मैंने हरफ़ हरफ़ इन में
तुम्हें क़ैद किया है !
या यूँ कहूँ ...
मैंने तुम में ख़ुद को क़ैद किया है !