...

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अनगिनत ख्वाहिशें
आँखों में सपनें लाखों पले थे।
चाहत थी,उम्र थी,इसलिए कोसों चले थे।।
यह क्या हो गया, राहे सफर में ।
आज सब ही खड़े हैं ,बस हम तन्हा पड़े थे।।