...

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कुछ भी नही है...
अब जिंदगी की प्यास, कुछ भी नही है,
इन आंखों की तलाश, कुछ भी नही है.

दर्द, गम, यादें, बीते वक्त के साए,
इसके सिवा मेरे पास, कुछ भी नही है.

कड़वे तजुर्बो से भरी है जिंदगानी,
जी में बची मिठास, कुछ भी नही है.

बेशक, मेरे दिल के सूनेपन के आगे,
ये सूना सा आकाश, कुछ भी नही है.

तुम्हें या फिर ज़माने को पसंद आए,
ऐसा मुझमें खास, कुछ भी नही है.

मिला तो मिला न मिला तो न मिला,
जिंदगी को आस, कुछ भी नही है.

गुजरते वक्त के साथ मौत आ गई,
जी में जिंदा एहसास, कुछ भी नही है.
मानसी की कलम✍️