...

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उड़ान हौंसलों की
कभी तो आजाद हो....
तू दुनिया दारी के,
इस पिंजरे से "
पता नही क्यों कैद है,
रिश्ते नातो की इन जंजीरो से,,,,!!

आखिर क्यों पड़ा है....
इस तरह थक हार के,
तू जमीन पर "
चल भर उड़ान हौंसलों की,
क्यों,,,,लड़ता है तू तक़दीर से,,,,!!

हार गया तो क्या हुआ...
ना जाने क्यों हारने से,
तू...