मैं,, चाँद और तुम
जब से तुमने बताया है,,,
मैं रोज इस चाँद को निहारती हूं घंटों तक
और करती हूं सब अपनी बातें चाँद से
क्या कभी इसने मेरा संदेश तुम तक भेजा है
ये चाँद तो तुम्हारे शहर में भी दिखता है ना साहिब
क्या कभी तुमको भी मेरा अक्स नजर आया है इसमें
क्या कभी मेरा प्रेम मेरी भावनाओं को
चाँदनी के माध्यम से इसने उड़ेला है तुम पर
क्या तुमने कभी चाँद के माध्यम से मुझे महसूस किया है
बोलो ना साहिब,,,
क्या ऐसा तुम्हें भी लगता है जो मैं सोचती हूं
वो सब तुम्हें अहसास हो जाया करता है
बोलो ये सच है ना 😊
Namita Chauhan
मैं रोज इस चाँद को निहारती हूं घंटों तक
और करती हूं सब अपनी बातें चाँद से
क्या कभी इसने मेरा संदेश तुम तक भेजा है
ये चाँद तो तुम्हारे शहर में भी दिखता है ना साहिब
क्या कभी तुमको भी मेरा अक्स नजर आया है इसमें
क्या कभी मेरा प्रेम मेरी भावनाओं को
चाँदनी के माध्यम से इसने उड़ेला है तुम पर
क्या तुमने कभी चाँद के माध्यम से मुझे महसूस किया है
बोलो ना साहिब,,,
क्या ऐसा तुम्हें भी लगता है जो मैं सोचती हूं
वो सब तुम्हें अहसास हो जाया करता है
बोलो ये सच है ना 😊
Namita Chauhan