...

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मुलाक़ात वाली कॉफ़ी...
वो हो गई परदेसी पीछे छोड़ औक़ात वाली कॉफ़ी,
आती अक्सर याद हमें, वो मुलाक़ात वाली कॉफ़ी।

कॉफ़ी की बूँद-बूँद अब भी बयाँ करती है दास्तान,
कितने ख़्वाब दिखाती, वो ख़यालात वाली कॉफ़ी।

जोड़ते थे उसके लिए रुपयों संग अनगिनत लम्हे,
बातें बन यादें खिल उठी वो लम्हात वाली काॅफ़ी।

हालात जो हो, स्वाद उसका यूँ ही बरक़रार रहेगा,
भूले नहीं भुलाये जाएगी वो जज़्बात वाली कॉफ़ी।

साल-दर-साल गुज़रे फिर भी सबकुछ याद 'धुन',
जाते हैं तन्हा ही पीने वो साथ-साथ वाली कॉफ़ी।
© संगीता पाटीदार 'धुन'


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