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प्रतिक्षा
स्थिर तन चंचल मन,
अडिग प्रतिक्षा की लगन;
शम्भू जैसे पाने को गौरा संग,
गौरा जैसे करतीं प्रतिक्षा क्षण - क्षण,
इंतजार का हर एक क्षण ,
बिन उसके कैसा होता ,
जला हो जो कभी इस ज्वाला में ,
मन उसका ही है रोता,
कैसे वो समझेगा इसको,
ना जिसने महसूस किया है,
बिन मेहनत, श्रम बिन ही जिसको
मरुभूमि में नीर मिला है ,
परवाने की लगन से चिंतित
शमा उसे जब समझाती है,
जल न जाए परवाना यूं,
खुद चिंता में जल जाती है,
प्रेम ,तड़प और विश्वास की ,
विचित्र- विलक्षण रही कहानी ,
नई रीत- राह ना है ये ,
सदियों की है रीत पुरानी.....
© Munni Joshi
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