...

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मेरी वो कहानियां
कहानियां तो मैंने भी लिखी थी
पर आंधियों से सब उड़ गई
जो सहेजे थे पन्ने तकिए के नीचे
उसकी स्याही भी धुल गई
इरादे सफेद बहुत थे आगाज़ में
कालिख समाज से मिल गई
गीली थी पलकें मगर वक़्त की आग में
ख्वाबों की सूखी पत्तियां जल गईं