पिता (ग़ज़ल)
पिता (ग़ज़ल)
मापनी -- २२२२ २२२२ २२२२ २२२
माँ ममता की लोरी है, तो बच्चों के हैं प्यार पिता,
रिश्तों में अनमोल लगे, हैं माता का श्रृंगार पिता।
साथ रहे जीवन भर वो, पर ऐसा सबका भाग्य कहाँ,
निज बच्चों के खातिर जग में, होते हैं संसार पिता।
घर द्वार सभी अच्छे लगते, किलकारी हो घर में जब,
घर द्वार तभी सजते हैं जब, होते बंदनवार पिता।
सारे कमरे जगमग करते, परिवार लगे अपना सा,
शोभा उनकी बढ़ जाती, गर कमरे की दीवार पिता।
ये मेरा है ...
मापनी -- २२२२ २२२२ २२२२ २२२
माँ ममता की लोरी है, तो बच्चों के हैं प्यार पिता,
रिश्तों में अनमोल लगे, हैं माता का श्रृंगार पिता।
साथ रहे जीवन भर वो, पर ऐसा सबका भाग्य कहाँ,
निज बच्चों के खातिर जग में, होते हैं संसार पिता।
घर द्वार सभी अच्छे लगते, किलकारी हो घर में जब,
घर द्वार तभी सजते हैं जब, होते बंदनवार पिता।
सारे कमरे जगमग करते, परिवार लगे अपना सा,
शोभा उनकी बढ़ जाती, गर कमरे की दीवार पिता।
ये मेरा है ...