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क्या ढूंढोगे तुम मुझे??
क्या ढूंढोगे तुम मुझे..??

उतर रहा है सूरज फ़िर बालकनी के साथ
जो ऐसे लग रहा है जैसे पहले प्रेम में पड़ा कोई प्रेमी आतुर हो प्रेमिका से मिलने को
इसे देखकर ख़्याल इक आया..और ख़्याल ही क्या..सच में तो एक सवाल था..
इस सवाल के जवाब के लिए तुमसे इजाजत नहीं माँगूंगी!क्योंकि मैं तुम्हारी इजाज़त के बग़ैर आदतन सवाल पूछ ही लिया करती हूं,
और सवाल ये कि
क्या कभी तुम्हारे ज़ेहन में कभी यूँ आया-जब मैं तुम्हारे पास न रहूँगी, तो क्या कभी ढूंढोगे तुम मुझे??

अलसाई शाम में...या तरोताज़ा सुबह में,
किसी सर्द दोपहर में या तपती गर्मी के उस दौर में..जब प्यासी धरती पर पानी की एक बूंद की खुशबू अंतर्मन को आह्लादित कर देती है और धरती की प्यास और भड़क उठती है,

क्या ढूंढोगे तुम मुझे..उस तन्हा सुबह की सिलवटों में
जब तुम्हारे बिस्तर पर मेरी खुशबू कहीं नहीं होगी..!!

क्या तुम ढूंढोगे मुझे ..दुनिया भर के प्रिय रंगों वाले गुलाबी और सन्तरी फूलों से अलग..
उन सफ़ेद फूलों में जिनमें मेरी आत्मा बसती है!!

क्या तुम ढूंढोगे मुझे..अनमने-से सड़क पर चलते-चलते और पदचाप से उड़ जाते उन परिंदों में
जो जाते हुए तो दिखते हैं परन्तु जिनके आने की ख़बर या वक्त नहीं होता और न ही होता है उनका ठिकाना
जो दूर गगनमण्डल में मेरी आत्मा की तरह गुम हो जाने वाले हों!!

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© ©सीमा शर्मा 'असीम'