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घिरती घटा के उर में...
घिरती घटा के उर में व्यथित सा बवंडर है।
घनघोर वृष्टि मे अदीठ दृगंब का समंदर है।
पीड़ा का निर्बाध प्रवाह अचला के अंतर में
शीत के उत्कर्ष से उद्वेलित सा प्रभंजन है।
भूत के भूत ने मुझे गाठ लिया गठबंधन में
ठन गया है समर अब आवेश में वर्तमान है।
स्मृति के चिन्ह लिए उम्र ओढ़ कर बैठी हूॅं,
प्रतीति के अलाव है भविष्य करता मंथन है
#shubh
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