...

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गए हैं
लम्हात आजकल के कुछ फ़ज़ूल से गए हैं,
आजकल हम अपनी क़ुदरत भूल से गए हैं.

ज़िन्दगी बेहतर बनाने की चाहत में अपनी,
इस ज़िन्दगी को जीना हम कुछ भूल से गए हैं.

दुनिया भर की ख़बरों से ये दिल उचटता है,
लगता है जैसे इंसान अपने उसूल से गए हैं.

अपने हक़ की फ़िक्र है, जिम्मेदारी की नहीं,
कई हैं जो हवस-ए-वुसूल की हूल से गए हैं.

मिट्टी-बरदारों के बेतकल्लुफ़ अंदाज़ से लगा,
ज़रूरी न रहे होंगे जो ज़िंदगी-ए-मलूल से गए हैं.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'

कुदरत - प्रकृति, स्वभाव (nature, behaviour)
वुसूल - दूसरे का धन लेना, वसूल करना, उगाही (realization or forceful collection of money)
मिट्टी बरदार - मृत शरीर को कंधा देने वाले (coffin bearers)
बेतकल्लुफ - सरल, आराम से (simple, easygoing)
मलूल - उदास, दुःखी (sad)

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