अनगिणत ख्वाहिशे
अनगिनत ख्वाहिशों की किश्ती पर,,,,
दिन रात संवार रहते हों ।
इस लिए तो हर पल,,,
इतना परेशान रहते हों।
सब्र को त्यागकर,,
बस लालच का चोला पहना लिया।
तेरे इस बढ़ते हुए लालच ने,,
सुकून तेरा है छीन लिया।
गाड़ी, बंगला,धन और दौलत,,
चलो मना तुमने बहुत कमाई है।
पर इन बेजान सी चीजों खातिर,,
अपनी रातों की नींद गंवाई है।
भर रहे हों तंजौरी कागज के नोटों से,,
तुम्हें लगता हैं बहुत अमीर हो रहे हों।
ज़रा पीछे मुड़कर देखो यारों,,
रिश्तों के मामले में तो गरीब हो रहें हों।
यह कैसा लालच हैं आगे बढ़ने का,,
जिसने रिश्तों में मतलब का बीज...
दिन रात संवार रहते हों ।
इस लिए तो हर पल,,,
इतना परेशान रहते हों।
सब्र को त्यागकर,,
बस लालच का चोला पहना लिया।
तेरे इस बढ़ते हुए लालच ने,,
सुकून तेरा है छीन लिया।
गाड़ी, बंगला,धन और दौलत,,
चलो मना तुमने बहुत कमाई है।
पर इन बेजान सी चीजों खातिर,,
अपनी रातों की नींद गंवाई है।
भर रहे हों तंजौरी कागज के नोटों से,,
तुम्हें लगता हैं बहुत अमीर हो रहे हों।
ज़रा पीछे मुड़कर देखो यारों,,
रिश्तों के मामले में तो गरीब हो रहें हों।
यह कैसा लालच हैं आगे बढ़ने का,,
जिसने रिश्तों में मतलब का बीज...