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जिंदगी का हिस्सा
वक्त्त,क्या लिखूँ वक्त्त पर और कितना ही लिखूँ, क्योंकि वक्त्त पर तो जितना भी लिखूँ उतना ही कम हैं, वक्त्त की भी एक बढ़ी अजीब फिदरत हैं, एक पल में गमों को खुशियों में बदल देता हैं तो अगले ही पल खुशियों को गमों में, एक पल खुब हसता हैं तो अगले ही बड़ा रूलता हैं, पर वक्त्त को भी क्या ही कहा जाऐ, क्योंकि आज कल तो इंसान भी वक्त्त जैसे ही हो गऐ हैं, पल पल रंग बदलते हैं,हर पल...