...

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बेटियाँ
बेटियाँ सर का ताज होती है
गहनों का वो साज होती है,
गानों का है वो सूर
रात का है वो नूर;

बेटी बनकर वो घर है सजाती
बहन बनकर वो राखी है बांधती,
बहू बनकर सबको खुश है रखती
माँ बनकर सबका खयाल है रखती;
सांस बनकर बहू पर रोब है जमाती
दादी बनकर कहानिया है सुनाती;

सप्तसुरों का है ये गीत
इंद्रधनु की है ये प्रीत,
ऐसी है ये घर की बेटी
है ये सबकी धन की पेटी...!
- श्रावणी संजय.