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गजल
मैने गम भी लिखा ,और लिखा प्रेम भी।
तुमको सावन लिखा,मै घटाएं वही।
दूर होके जो तुम रहना चाहो प्रिय ।
दूरियो की विधाएं निभाने लगी ।
तुमसे होके विमुख, मैं हर एक मोड़ पे।
रास्तों में भी नजरे , छुपाने लगी ।
तुम को अम्बर लिखा , मैं हूं वसुधा वही ।
फासलों का ही, अपना रहा वास्ता।
मैने गम भी,,,
मन को रखकर सिराहने ,संवारा बहुत ।
रात भर आंख निदिया ,में रोई बहुत ।
दूरियां कम हो बस, ये करी गणनाए ।
कहा पे कौनसी दहाई ,इकाई रही ।
बस इसी द्वंद में नीद आई नही।
तुम को जुगनू लिखा , में राते वही ।
फिर अंदेहरो मे ,अपना रहा रास्ता ।
मैने गम,,,
© sarthak writings
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