चार दिन कि जिंदगी
क्या पता क्यूँ नाराज है खुदा
सुनना उसने अब बंद कर दिया!
जिनके हाथ थे मेहनत से कटे
उन्हें खाली ही रखा न दामन
भर दिया!
चार दिन की जिंदगी चार ही दिन
बन के रह गयी,
जीना तो क्या था उन्हें जिन्हें
न रहने के लिए घर,न तन ढकने
के लिए दिया!
खाना भी मिल जाता है उन्हें
कभी कभी भीख की तरह,
इस चार दिन की जिंदगी मे बस
यही तो मिला!
खुदा की इबादत...
सुनना उसने अब बंद कर दिया!
जिनके हाथ थे मेहनत से कटे
उन्हें खाली ही रखा न दामन
भर दिया!
चार दिन की जिंदगी चार ही दिन
बन के रह गयी,
जीना तो क्या था उन्हें जिन्हें
न रहने के लिए घर,न तन ढकने
के लिए दिया!
खाना भी मिल जाता है उन्हें
कभी कभी भीख की तरह,
इस चार दिन की जिंदगी मे बस
यही तो मिला!
खुदा की इबादत...