...

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कविता
इतना उलझे कि होश न रहा
सुलझे हुए कैसे दिखते थे हम
कुछ तो कभी आसान रहा होगा
जब खिलखिला के उठते थे हम

इतनी गहराइयों में डूबे कि
नदी की लहरें भूल गए हम
कुछ तो समझ से परे समझे होंगे
कि खुद नासमझ हो गए हम

वो एक केसरिया आसमान
सुबह शाम मिलता है जाते आते
नीले आंचल पर फैले सफेद बादल
के साथ तो चलना भूल गए हम