...

17 views

ख्वाव:दर्द
खवावों को टूटते बिखरते देखा है..
ख़ुद को ख़ुद में आज टूटते देखा है..
आहिस्ता आहिस्ता एक एक लम्हा खुद को खोते देखा है..
सजाया था एक ख्वाब एक क़ाली अँधेरी रात में..
आज उसे उजाले दिन में खोते देखा है..
आज ख़ुद की कश्ती को ख़ुद ही डुबाते देखा है..
आख़िर में अपनी शाख को ख़ुद ही काटते देखा है..
न जाने खवाओं के टूटने के दर्द को पल पल मरते देखा है..
जितना डूबना था, रोना था, रो लिए..
आज अपनी बारी के लिए इंतजार...