ये मजदूर ही है...
आँखें है पथराई हुई आसुओं के बीज बो रहा है,
कैसे वो बेबसी की चादर में लिपटा सो रहा है,
ये मजदूर ही है दोस्तों,
जो इतना मजबूर हो रहा है...
पैरों में है छाले पड़े हिम्मत में दर्द भर रहा है,
टूटे ना हौसला इतना जतन कर रहा है,
ये मजदूर ही है दोस्तों,
जो इतना मजबूर हो रहा है...
भूक की चिंता से भी मुँह अपना मोड़ रहा है,
एक...