**ताकत सबर की**
खुद को खुदी से लड़ाऊ में कब तक, ताकत सबर की आजमाऊ में कब तक।।
दिशा मेरे जीवन की जब तय हुई थी, मेरी अनिच्छा से ही तय हुई थी,
क्या सपना है मेरा,ये पूछा नहीं था ऐसा भी होगा, मैंने सोचा नहीं था।।
अनमने-मन से खुद को खपाऊ मैं कब तक
ताकत सबर की आजमाऊ में कब तक।
पंछी का पिंजरा तय हो गया था, उड़ानों पर पहरा तय हो गया था,
खुद को जो पाया घिरा, मैंने सोचा, कुछ जिंदा है अंदर, या मर गया मैंने सोचा।।
जीवन-मरण में छटपटाऊं मैं कब तक,
ताकत सबर की आजमाऊ में कब तक।
क्या जंजीरें तोड़ पाऊंगा, ऐसा अभी मैं सोच रहा था,
या इससे अच्छा पाऊंगा, इस दुविधा को तोल रहा था,
नदी बांध का धीरे-धीरे बोझ बढ़ाती जाती थी,
ऊपर से दुविधा की बारिश चोट बढ़ाती जाती थी।।
टूट अचानक से जाएगा,इसको और बचाऊँ कब तक,
एक सबर ही ताकत मेरी,इसको अब आजमाऊँ कब तक।।
इसको अब आजमाऊँ कब तक।।
© Rudravi
दिशा मेरे जीवन की जब तय हुई थी, मेरी अनिच्छा से ही तय हुई थी,
क्या सपना है मेरा,ये पूछा नहीं था ऐसा भी होगा, मैंने सोचा नहीं था।।
अनमने-मन से खुद को खपाऊ मैं कब तक
ताकत सबर की आजमाऊ में कब तक।
पंछी का पिंजरा तय हो गया था, उड़ानों पर पहरा तय हो गया था,
खुद को जो पाया घिरा, मैंने सोचा, कुछ जिंदा है अंदर, या मर गया मैंने सोचा।।
जीवन-मरण में छटपटाऊं मैं कब तक,
ताकत सबर की आजमाऊ में कब तक।
क्या जंजीरें तोड़ पाऊंगा, ऐसा अभी मैं सोच रहा था,
या इससे अच्छा पाऊंगा, इस दुविधा को तोल रहा था,
नदी बांध का धीरे-धीरे बोझ बढ़ाती जाती थी,
ऊपर से दुविधा की बारिश चोट बढ़ाती जाती थी।।
टूट अचानक से जाएगा,इसको और बचाऊँ कब तक,
एक सबर ही ताकत मेरी,इसको अब आजमाऊँ कब तक।।
इसको अब आजमाऊँ कब तक।।
© Rudravi
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