खामोशी के स्वर।
सन्नाटा भी जरूरी है,
खामोशी भी जरूरी है,,
जब चारों तरफ शोर मचा हो।
तब चुप रहना ही समझदारी है।।
अक्सर लोग सहम जाते हैं,
जब खामोशी बोल जाती है।
कुछ नये शब्दों के साथ ,कुछ नये अर्थो के साथ।।
बताने के लिए जो अनसुना हो, सीखाने के लिए जो कुछ नया हो।।
कोरोना वही दबी आवाज है, प्रकृति की,
जिसको मानव ने चाहकर भी नहीं सुना।
अब जब खुद असहाय है, तो मजबूरी में,
मुस्लफी में, याद तो आयी, उसे अपने अस्तित्व की।।
जिस धरती में फला-फूला, उसी को नोंच लिया,, देकर इशारे जब-तब उसे धरा ने समझाया।
अपने ही सुरुर में सवार,, वह सब अनसुना करता रहा।।
हैरान है, परेशान है, चाँद तक पहुँचने वाला यह पंछी,, सोच रहा ऐसा - कैसे हुआ,, जो हुआ ,अब तक कभी नहीं ,अकल्पनीय, अविश्वसनीय।।
वह इतना बेबस, इतना लाचार,,
उसके सारे आविष्कार पस्त, उसकी सारी खोजें बेकार।। जतन कर लिए हजार पर ना मिला कोई इलाज।।।
सावधान मनुष्य!
अब भी संभल जा ,और सुन अपनों का करुण प्रलाप,,
जिनको खो दिया, अचानक तुमने यूँ ही अनायास।।
यह ही रुदन होता है, सदा इस प्रकृति का भी,, बस बता नहीं सकती ,,,तो खामोशी से सदा सहते रही।।
अब इन खामोशियों से अर्थ निकाल,
सुन वसुंधरा की करुण पुकार,,
संभलते हुए त्रासदी से, सीखते हुए सबक अपार।
फिर से नयी राह पकड़,, जिसमें शांति और शुकून दोनों हो साथ- साथ।।!
© Rishav Bhatt
खामोशी भी जरूरी है,,
जब चारों तरफ शोर मचा हो।
तब चुप रहना ही समझदारी है।।
अक्सर लोग सहम जाते हैं,
जब खामोशी बोल जाती है।
कुछ नये शब्दों के साथ ,कुछ नये अर्थो के साथ।।
बताने के लिए जो अनसुना हो, सीखाने के लिए जो कुछ नया हो।।
कोरोना वही दबी आवाज है, प्रकृति की,
जिसको मानव ने चाहकर भी नहीं सुना।
अब जब खुद असहाय है, तो मजबूरी में,
मुस्लफी में, याद तो आयी, उसे अपने अस्तित्व की।।
जिस धरती में फला-फूला, उसी को नोंच लिया,, देकर इशारे जब-तब उसे धरा ने समझाया।
अपने ही सुरुर में सवार,, वह सब अनसुना करता रहा।।
हैरान है, परेशान है, चाँद तक पहुँचने वाला यह पंछी,, सोच रहा ऐसा - कैसे हुआ,, जो हुआ ,अब तक कभी नहीं ,अकल्पनीय, अविश्वसनीय।।
वह इतना बेबस, इतना लाचार,,
उसके सारे आविष्कार पस्त, उसकी सारी खोजें बेकार।। जतन कर लिए हजार पर ना मिला कोई इलाज।।।
सावधान मनुष्य!
अब भी संभल जा ,और सुन अपनों का करुण प्रलाप,,
जिनको खो दिया, अचानक तुमने यूँ ही अनायास।।
यह ही रुदन होता है, सदा इस प्रकृति का भी,, बस बता नहीं सकती ,,,तो खामोशी से सदा सहते रही।।
अब इन खामोशियों से अर्थ निकाल,
सुन वसुंधरा की करुण पुकार,,
संभलते हुए त्रासदी से, सीखते हुए सबक अपार।
फिर से नयी राह पकड़,, जिसमें शांति और शुकून दोनों हो साथ- साथ।।!
© Rishav Bhatt