19 views
पूछने लगी कलम।
उठी कलम आज,
कुछ लिखने को,
बहुत दिन बाद।
नाराज हो,वह लगी पूछने,
कहां थे,अब तक मेरे सरताज,
जो आज आपको आ गई मेरी याद।
माथे पर रख हाथ,
धीरे धीरे,हम लगे बताने।
कार्य का कुछ भार ऐसा,
उस पर मार्च का महीना,
अधिकारिक कार्य में,
हम थे इतने व्यस्त।
कब बजे सात कार्यालय में,
और कब हो गया सूर्य अस्त,
कुछ नहीं हमें मालूम।
सुनकर उत्तर मेरा,
बोली मेरी कलम,
अजी,छोड़ो बहाना,
इतना ही है बहुत,
कि तुमने अपनी गलती को है माना।
पर क्या,जवाब दोगे तुम मित्रों को,
गैरहाजिर थे तुम,
उनके लेखन के पठन को,
बतलाओ,क्या उत्तर दोगे तुम।
जब स्वीकार न कर रही कलम
हमारी मजबूरी की सच्चाई को
तब किया आत्म समर्पण हमने,
बोले हाथ जोड़कर हम।
दे दीजिए हमें इस बार क्षमादान,
न होगी,आगे अब पुनरावृत्ति,
हम देतें हैं,सबको यह जुबान,
अब न होनी चाहिए इसमें,
किसी को आपत्ति।
© mere alfaaz
कुछ लिखने को,
बहुत दिन बाद।
नाराज हो,वह लगी पूछने,
कहां थे,अब तक मेरे सरताज,
जो आज आपको आ गई मेरी याद।
माथे पर रख हाथ,
धीरे धीरे,हम लगे बताने।
कार्य का कुछ भार ऐसा,
उस पर मार्च का महीना,
अधिकारिक कार्य में,
हम थे इतने व्यस्त।
कब बजे सात कार्यालय में,
और कब हो गया सूर्य अस्त,
कुछ नहीं हमें मालूम।
सुनकर उत्तर मेरा,
बोली मेरी कलम,
अजी,छोड़ो बहाना,
इतना ही है बहुत,
कि तुमने अपनी गलती को है माना।
पर क्या,जवाब दोगे तुम मित्रों को,
गैरहाजिर थे तुम,
उनके लेखन के पठन को,
बतलाओ,क्या उत्तर दोगे तुम।
जब स्वीकार न कर रही कलम
हमारी मजबूरी की सच्चाई को
तब किया आत्म समर्पण हमने,
बोले हाथ जोड़कर हम।
दे दीजिए हमें इस बार क्षमादान,
न होगी,आगे अब पुनरावृत्ति,
हम देतें हैं,सबको यह जुबान,
अब न होनी चाहिए इसमें,
किसी को आपत्ति।
© mere alfaaz
Related Stories
26 Likes
13
Comments
26 Likes
13
Comments