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ऐसी थी वो
जब वो गुजरती वो हवेली से
चाँद भी खिड़किया या बदलता था
नूर जो उसका ऐसा था
हमारी दिल की नज़रों में भी उसे देखा था
उसकी मुस्कान से गुलाबी हो जाता था समा
जैसे गुलाब की क्यारी हो वहां
आँखे उसकी इतनी गहरी
जैसे बस्ती हो झील वहा
एक आँसू भी आजाए तो
बारिश भी हो वहां
बिना बोले समझती थी वो
सबकी आँखे पढ़ जाती थी वो
जैसे कोई अपना हो वहाँ
© Dark Rose
चाँद भी खिड़किया या बदलता था
नूर जो उसका ऐसा था
हमारी दिल की नज़रों में भी उसे देखा था
उसकी मुस्कान से गुलाबी हो जाता था समा
जैसे गुलाब की क्यारी हो वहां
आँखे उसकी इतनी गहरी
जैसे बस्ती हो झील वहा
एक आँसू भी आजाए तो
बारिश भी हो वहां
बिना बोले समझती थी वो
सबकी आँखे पढ़ जाती थी वो
जैसे कोई अपना हो वहाँ
© Dark Rose
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