शीर्षक - अमृत हो तुम।
शीर्षक - अमृत हो तुम।
मन की पट पर चित्रित हो तुम।
तृष्णा जिसकी वो अमृत हो तुम।
दर्पण देखु तुम्हीं दिखाई देती,
मुझमें कहीं तो आश्रित हो तुम।
मधुर,कोमल,सुलोचना भांति,
ज्वार पर ठहरी शीत हो तुम।
हृदय स्पंदन तुम पर ललाहित,
भा चुकी मुझे...
मन की पट पर चित्रित हो तुम।
तृष्णा जिसकी वो अमृत हो तुम।
दर्पण देखु तुम्हीं दिखाई देती,
मुझमें कहीं तो आश्रित हो तुम।
मधुर,कोमल,सुलोचना भांति,
ज्वार पर ठहरी शीत हो तुम।
हृदय स्पंदन तुम पर ललाहित,
भा चुकी मुझे...