तभी मर्द कहलायेगा
वो पुरुष है पौरुष उसका आजमाया जाएगा
हर जुल्म सहना होगा हस कर तभी मर्द कहलायेगा
न्याय केवल विशेष के लिए है पुरुष वंचित ही रह जाएगा
वो गुहार लगाते लगाते थक अंततः अतुल सुभाष बन जाएगा
परिभाषाओं से परे है पुरुष बस इसलिए समझा नहीं गया
स्त्री को समझने का प्रयास विफल रहा माना पर प्रयास तो किया गया
पुरुष को भी दर्द होता है वो जो मर्द है वो भी तो रोता है उसमें भी तो एक जान है
पुरुष ईश्वर की ही तो कृति है माना नारी सृष्टि का...
हर जुल्म सहना होगा हस कर तभी मर्द कहलायेगा
न्याय केवल विशेष के लिए है पुरुष वंचित ही रह जाएगा
वो गुहार लगाते लगाते थक अंततः अतुल सुभाष बन जाएगा
परिभाषाओं से परे है पुरुष बस इसलिए समझा नहीं गया
स्त्री को समझने का प्रयास विफल रहा माना पर प्रयास तो किया गया
पुरुष को भी दर्द होता है वो जो मर्द है वो भी तो रोता है उसमें भी तो एक जान है
पुरुष ईश्वर की ही तो कृति है माना नारी सृष्टि का...