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जाने कैसा ये कलयुग आ रहा है ।
इस धरती पर जाने कैसा कलयुग आ रहा है
इंसान इंसान से नफ़रत कर जानवरों पर प्यार लुटा रहा है।
कभी होती थी शर्म जिनको गाय और भैंस अपने आँगन में पालने पर
आज वो भी बड़ी शान से अपने घर में कुत्ते और बिल्ली ला रहा है ।
इस धरती पर जाने कैसा कलयुग आ रहा है
अपने बूढ़े माँ बाप को ये बोलकर घर में कमरे कम हैं
सेवा न करनी पड़ी अपने माँ बाप इसलिए उनको वृधा आश्रम भेजा रहा है ।
अपने बुजुर्ग माँ बाप को वृधा आश्रम में छोड़ कर
वही इन्सान अपने घर में कुत्ते बिल्ली के रहने के लिए अलग अलग कमरे बनवा रहा है ।
इस धरती पर जाने कैसा कलयुग आ रहा है
कभी खत्म हो जाता था जिसका सारा वेतन अपने माँ बाप को दो वक्त की रोटी खिलाने में
आज वही इन्सान अपने घर में पालतू कुत्ते को मक्खन और ब्रेड खिला रहा है ।
अपने माँ बाप के बीमार होने पर जो उनको सरकारी अस्पताल में लाइन लगवाते थे
आज वही इन्सान अपने कुत्ते और बिल्ली के लिए
प्राईवेट डाक्टरों को घर बुला रहा है।
इस धरती पर जाने कैसा कलयुग आ रहा है
कहीं अपने स्वार्थ और स्वाद के लिए किसी बेज़ुबान को कोई मारकर खा रहा है
तो कहीं वही इन्सान अपने पालतू जानवरों से हमदर्दी दिखा रहा है ।
गाय भैंस बहुत महँगा जानवर है बोलकर वही
इन्सान विदेशों से पच्चीस पचास हजार के सिर्फ़ कुत्ते
और बिल्ली के बच्चे मँगवा रहा है।
इस धरती पर जाने कैसा कलयुग आ रहा है
इंसान इंसान से नफ़रत कर कुत्ते और बिल्ली
पर प्यार लुटा रहा है ।