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Life
झूठ की बुनियाद पर,
डाली फरेब की नींव..
शक की थी रेत उसपे,
रखी ज़िल्लतों की ईंट..
अश्कों की ज़मीं पर,
खड़ी दर्द की दीवारें..
बेग़ैरती में मगरूर था,
जिस छत का ईमान..
जहां न सच के झरोखे,
न थी इश्क़ की हवा..
उस रिश्ते के मकां को,
तो बिखरना ही था..
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