हीर और उसका रांझा
आज़ मैं अपनी ये खुली ज़ुबानी,
आपको सुनाता दो दिलों की इक कहानी।
एक था रांझा , एक उसकी हीर थी,
हसीं मौसम था, पत्ते लहलहा रहे थे;
कोयल की निदा को कान लगाकर,
गुलाबी मखमली गुल खिलखिला रहे थे।
उन दोनों कालिद ने तब इज़हार किया,
इक दूसरे की मुहब्बत का तब इकरार किया;
पतझड़ हो चुकी हसीं वादियों को,
गुल ज़माकर एक ख़ूब वसंत बहार दिया।
वालिद को अपने उन्होंने प्यार से समझाया,
दो दिलों का टाका भिड़ने का मतलब बताया;
क्या करते बो भी,
उन्होंने फिर दोनो का ठंडे सितारों के नीचे निकाह कराया।
ख़ूब हसीं ज़िंदगी थी ना!!!
ना कोई गिला, ना कोई शिक्बा,
ना ही नोकझोक, ना ही था शर्क-ए-अख़फा।
बो दो कोमल कालिद भारी निषत से तब जी रहे थे,
अपनी छोटी मोटी नाराज़गी को घूट समझके पी रहे थे;
आहा!! वालिद को अपने उन्होंने पैगाम भेजा,
गभन हुई हीर को सभी ने तब सहेज़ा;
पर सोच सबकी ना जाने क्यूं घटिया थी,
बाबा के कहने पर, लड़का होगा, हीर को उन्होंने एक खटिया दी;
हकीम कहते ये खिलाओ वारिस ही पैदा होगा,
हीर का दिल ये देखकर रूठा उससे कुछ न कहे बस रोता होगा।
सास उसकी उसे रोज़ाना नसीहत देती,
हम्मे हमारा वारिस मंगता, आकर बस ये ही कहती;
समाज भी हीर का साथ छोड़ दिया था,
हुजूर-ए-गल्ब ने भी उसके जज़्बातों को मोड़ दिया था।
बो हसीं रातें अब चुभने लगी थीं,
बो सुनहरे दिन की बातें अब छुटने लगी थीं;
ना बो उसका अब खयाल रखता,
ना बो उसे अब अपने प्यार का इज़हार करता,
बातों में आके सबकी, बस बो भी अब वारिस का इंतजार करता।
आज हीर कुछ डरी सहमी सी लगी,
Ultrasound में दोशीज़ा जो उसे दिखी;
किया बताएगी सबको बो?
कैसे समझाएं अब सबको बो?
ना कोई खयाल आया, ना ही बो प्यार आया,
लात मारकर कोख पर उसकी, उसके रांझा ने ही उसे घर से बेदखल कराया।
वालिद रांझा के उसी से बोले तलाक ले,
हम तेरा एक और निकाह कराएंगे,
हम उस जोरू से अपना वारिस निकलवाएंगे;
अगर बो भी न कर सकी कुछ तो,
हम तेरेको एक और बीबी ले देंगे जी,
बो लड़कियां तो खेल हैं, हम तो उनके साथ खेलेंगे जी।
रांझा अब बो रांझा न रहा,
हीर अब बो हीर ना रही,
रोते रोते दर्द से कहराते अपने घर को चली;
मां बाप का आशियाने में थी जो पली,
बो उनकी गोद में फिर जा मिली।
फरदा होते ही एक पैगाम आया,
रांझा की तलाक की बात सुन,
कोई वहां बात को हज़म ना कर पाया।
चाहता ना था कोई पर तलाक पे दस्तखत करने पड़े,
मां बाप हीर के तब बिना अखियों के ही रो पड़े।
फिरके ने तब अपना कमाल दिखाया,
तलाक सुन इसपर बात बनाकर बवाल मचाया;
गलती सब हीर की ठहराते,
एक ही गिरोह के तो हैं ना!
वारिस न दिया ये बात हज्म ना कर पाते।
उधर रांझा को एक नई हीर मिल गई,
खुशियां हमारी हीर की मोतियों सी बिखर गई;
जिन्हें बीन तो सकते हैं, पर बीनेंगे नही,
जिन्हें माला में सहेज तो सकते हैं, पर उसे तोड़ेंगे सभी।
लहूं का दरियां अखियों से केवल उसकी तब उतर रहा था,
समाज ये कपटी पर उसी को न जाने क्यूं धिक्कार रहा था;
गलती क्या थी उसकी, तलाक तो उसने दिया था,
बर्बाद जिंदगी इसकी हुई, जश्न तो असली उसने किया था।
"बस अब बोहोत हुआ,
अब मैं और नही जी सकती,
अब मैं और नही सह सकती"
ये कहकर हमारी हीर ने खुदकुशी कर ली,
हीर और रांझा की कहानी बस यहीं सिमट ली।
ये भद्दी सोच ही वजह,
दो नन्ही परियों को जाना पड़ा;
कोन बदलेगा इस ज़माने को,
जो अक्ल से है बेगाना पड़ा।।।
© All Rights Reserved
आपको सुनाता दो दिलों की इक कहानी।
एक था रांझा , एक उसकी हीर थी,
हसीं मौसम था, पत्ते लहलहा रहे थे;
कोयल की निदा को कान लगाकर,
गुलाबी मखमली गुल खिलखिला रहे थे।
उन दोनों कालिद ने तब इज़हार किया,
इक दूसरे की मुहब्बत का तब इकरार किया;
पतझड़ हो चुकी हसीं वादियों को,
गुल ज़माकर एक ख़ूब वसंत बहार दिया।
वालिद को अपने उन्होंने प्यार से समझाया,
दो दिलों का टाका भिड़ने का मतलब बताया;
क्या करते बो भी,
उन्होंने फिर दोनो का ठंडे सितारों के नीचे निकाह कराया।
ख़ूब हसीं ज़िंदगी थी ना!!!
ना कोई गिला, ना कोई शिक्बा,
ना ही नोकझोक, ना ही था शर्क-ए-अख़फा।
बो दो कोमल कालिद भारी निषत से तब जी रहे थे,
अपनी छोटी मोटी नाराज़गी को घूट समझके पी रहे थे;
आहा!! वालिद को अपने उन्होंने पैगाम भेजा,
गभन हुई हीर को सभी ने तब सहेज़ा;
पर सोच सबकी ना जाने क्यूं घटिया थी,
बाबा के कहने पर, लड़का होगा, हीर को उन्होंने एक खटिया दी;
हकीम कहते ये खिलाओ वारिस ही पैदा होगा,
हीर का दिल ये देखकर रूठा उससे कुछ न कहे बस रोता होगा।
सास उसकी उसे रोज़ाना नसीहत देती,
हम्मे हमारा वारिस मंगता, आकर बस ये ही कहती;
समाज भी हीर का साथ छोड़ दिया था,
हुजूर-ए-गल्ब ने भी उसके जज़्बातों को मोड़ दिया था।
बो हसीं रातें अब चुभने लगी थीं,
बो सुनहरे दिन की बातें अब छुटने लगी थीं;
ना बो उसका अब खयाल रखता,
ना बो उसे अब अपने प्यार का इज़हार करता,
बातों में आके सबकी, बस बो भी अब वारिस का इंतजार करता।
आज हीर कुछ डरी सहमी सी लगी,
Ultrasound में दोशीज़ा जो उसे दिखी;
किया बताएगी सबको बो?
कैसे समझाएं अब सबको बो?
ना कोई खयाल आया, ना ही बो प्यार आया,
लात मारकर कोख पर उसकी, उसके रांझा ने ही उसे घर से बेदखल कराया।
वालिद रांझा के उसी से बोले तलाक ले,
हम तेरा एक और निकाह कराएंगे,
हम उस जोरू से अपना वारिस निकलवाएंगे;
अगर बो भी न कर सकी कुछ तो,
हम तेरेको एक और बीबी ले देंगे जी,
बो लड़कियां तो खेल हैं, हम तो उनके साथ खेलेंगे जी।
रांझा अब बो रांझा न रहा,
हीर अब बो हीर ना रही,
रोते रोते दर्द से कहराते अपने घर को चली;
मां बाप का आशियाने में थी जो पली,
बो उनकी गोद में फिर जा मिली।
फरदा होते ही एक पैगाम आया,
रांझा की तलाक की बात सुन,
कोई वहां बात को हज़म ना कर पाया।
चाहता ना था कोई पर तलाक पे दस्तखत करने पड़े,
मां बाप हीर के तब बिना अखियों के ही रो पड़े।
फिरके ने तब अपना कमाल दिखाया,
तलाक सुन इसपर बात बनाकर बवाल मचाया;
गलती सब हीर की ठहराते,
एक ही गिरोह के तो हैं ना!
वारिस न दिया ये बात हज्म ना कर पाते।
उधर रांझा को एक नई हीर मिल गई,
खुशियां हमारी हीर की मोतियों सी बिखर गई;
जिन्हें बीन तो सकते हैं, पर बीनेंगे नही,
जिन्हें माला में सहेज तो सकते हैं, पर उसे तोड़ेंगे सभी।
लहूं का दरियां अखियों से केवल उसकी तब उतर रहा था,
समाज ये कपटी पर उसी को न जाने क्यूं धिक्कार रहा था;
गलती क्या थी उसकी, तलाक तो उसने दिया था,
बर्बाद जिंदगी इसकी हुई, जश्न तो असली उसने किया था।
"बस अब बोहोत हुआ,
अब मैं और नही जी सकती,
अब मैं और नही सह सकती"
ये कहकर हमारी हीर ने खुदकुशी कर ली,
हीर और रांझा की कहानी बस यहीं सिमट ली।
ये भद्दी सोच ही वजह,
दो नन्ही परियों को जाना पड़ा;
कोन बदलेगा इस ज़माने को,
जो अक्ल से है बेगाना पड़ा।।।
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