...

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काश.....
ये बारिशों के मौसम की ,
ढलती हुई रात।।
और मेरी खिड़कियों से
अंदर आती हल्की हल्की
बूंदों की फुहार।।
दिल के कोने में यादों की
सूखी ज़मीं को धीरे धीरे
नम कर महकाने लगती हैं।।
जुबां पर वो तुम्हारा पसंदीदा
गाना थिरकने लगता है।।
और दिल किसी पंछी की
तरह उड़ जाता है,
उन बीते दिनों में जहाँ से
फिर कभी वापस लौट कर
आना नहीं चाहता।..
पर चेहरे पर आती बूंदों के साथ,
आँखों की बूंदें छलक ही जाती हैं,
और इतने में एहसास होता है
कि ये तो हाथों से रेत की तरह फिसला हुआ वक्त था।।
जो सिर्फ़ ज़हन में याद बनकर
आएगा आँखों से छलकने को!..
मन इस कदर बेचैन हो उठता है कि।।
सोचती हूं, काश! मैं वक्त के पहिए
को वापस घुमा पाती तो उन सारे
बीते हुए लम्हों को फिर से समेट लेती।।
लेकिन घड़ी को देखते ही इस ख्वाहिश के साथ-साथ
सांसें भी ठहर जाती हैं ।।।।
© Nishu __